Sunday, July 1, 2018

बताएं, शहर की हेल्थ, इंफ्रा, एजुकेशन, इकोनॉमी और सेफ्टी का हाल

Publish Date:Mon, 02 Jul 2018 12:17 AM (IST)

जागरण समूह की इस पहल में आप परिभाषित मानकों पर शहर की जरूरी सुविधाओं यानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्त, सुरक्षा, सड़क, पानी, बिजली इत्यादि का पारखी नज़रों से मूल्यांकन करेंगे। 01 जुला

विकास के पांच आधारों पर आप अपने शहर का हाल परखें- 

स्वास्थ्य/सेहत
कहते हैं कि इलाज से बेहतर बचाव है। अभी 21 जून को हुए अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का मैसेज भी यही था। योग भगाए रोग! निरोग रहना सबसे बड़ी नेमत है। तभी सारी दुनिया में आज इस बात पर जोर है कि नागरिकों को कैसे बीमार होने से बचाया जाए। रोगों को कैसे दूर रखा जाए। योग, व्यायाम, जीवन शैली में बदलाव, खान-पान की आदतों में बदलाव और सफाई ये पांच तत्व हैं, जिनसे आप एक स्वस्थ और निरोग शरीर हासिल कर सकते हैं।
इसका दूसरा चरण यह है कि बीमार हुए तो बेहतर चिकित्सा सुविधा कैसे उपलब्ध हो? भारतीय शहरों में चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता और स्तर अलग-अलग है। भारत में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 1.4 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है, यानी प्रति व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिदिन तकरीबन तीन रुपए खर्च खर्च होते हैं। भारत में दो हजार लोगों पर एक डॉक्टर है। अच्छे डॉक्टर और अच्छे अस्पतालों के जरिए ही स्वस्थ भारत, श्रेष्ठ भारत का निर्माण हो सकता है।


इन्फ्रास्ट्रक्चर (बुनियादी सुविधाएं)
सिंधु घाटी की सभ्यता की सबसे बेहतरीन चीज उसकी नगर योजना थी, जिसमें पहली बार सुनियोजित सड़कें, मकान और मकानों में स्नानागार की सुविधा दिखती है। कहते ही रोम की सभ्यता उसकी सड़कों के सहारे विकसित हुई थी। तीर की तरह सीधी सड़कें, जो एक दूसरे को नब्बे डिग्री के कोण पर काटती थीं! सो, विकास की पहली निशानी बुनियादी संरचना है। कोई भी देश उतना ही विकसित होता है, जितनी विकसित उसकी बुनियादी सुविधाएं होती है।
सड़कें, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, पुल, बांध, बिजली, पानी, स्कूल, कॉलेज ये सारी ऐसी चीजें हैं, जो बुनियादी संरचना में आती हैं। और, अब तो पर्यावरण संतुलन के लिए सिर्फ विकास नहीं , सुनियोजित विकास बात हो रही है। यह गर्व की बात है कि हर गांव तक बिजली की रोशनी पहुंच गई है। लेकिन शहरों की आबादी और उनके विस्तार के हिसाब से अभी काफी काम करने होंगे। शहरी विकास बढ़ेगा तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। जिला स्तर तक अगर बुनियादी ढांचे के विकास को पहुंचाया गया तो लोगों का नौकरी की खोज में भटकना बंद होगा।



 


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शिक्षा
एक बेहतर इंसान बेहतर राष्ट्र का निर्माण करता है और बेहतर इंसान के निर्माण की बुनियाद शिक्षा है। शिक्षा के कई पहलू हैं, छात्र और शिक्षक अनुपात का मामला हो या शिक्षा पर होने वाला खर्च हो या शिक्षकों की गुणवत्ता का मामला हो, इन मानकों पर विभिन्न राज्य - शहरों में स्थिति अलग है। सरकारी और निजी स्कूलों के स्तर में काफी फर्क है। प्राथमिक शिक्षा में औसतन 24 बच्चों पर एक शिक्षक का अंतरराष्ट्रीय औसत है पर भारत में कई राज्यों में 60 बच्चों पर एक शिक्षक हैं।
यह सही है कि देश में साक्षरता का स्तर बढ़ा है और शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरी है। ध्यान रहे भारत में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले ज्यादा युवा हैं। जिनको शिक्षित और प्रशिक्षित करके देश के विकास में उनका योगदान बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए शुरुआत बिल्कुल प्राथमिक शिक्षा से करनी होगी और पेशेवर शिक्षा तक ले जाना होगा। याद रखें नेल्सन मंडेला ने कहा था कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं।

अर्थव्यवस्था
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में यानी जनवरी से मार्च 2018 में देश की आर्थिक विकास दर 7.7 फीसदी रही। विकास दर वह मानक है, जिसमें हर व्यक्ति के विकास की राह छिपी है। भारत अगर दस फीसदी की विकास दर हासिल करता है, जिसकी संभावना इसमें है, तभी गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से मुक्ति संभव है। भारत में प्रति व्यक्ति आय एक लाख 11 हजार रुपए के करीब है। अगर विकास दर दहाई अंक में पहुंचती है तो प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी पर यह आसान लक्ष्य नहीं है।
इसके लिए जरूरी है कि हर विकास केंद्र , यानि हर छोटे-बड़े शहरों को अधिकतम योगदान देना होगा। सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले और अधिकतम लोगों की निर्भरता वाले सेक्टर पर ध्यान देना होगा। कृषि और सेवा क्षेत्र पर खास ध्यान देने होगा। स्वास्थ्य और शिक्षा-प्रशिक्षण व्यवस्था में सुधार और बुनियादी ढांचे के विकास से अर्थव्यवस्था में तेजी लाई जा सकती है।
 


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सुरक्षा और कानून व्यवस्था
किसी भी सभ्य समाज की पहली शर्त बेहतर सुरक्षा-कानून व्यवस्था है। अफसोस की बात है कि भारत में नागरिक और पुलिस का अनुपात बहुत अच्छा नहीं है। वैसे तो सुरक्षा राज्यों का विषय होता है पर केंद्र व राज्यों और राज्यों के बीच आपसी तालमेल से ही नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
यह अच्छी बात है कि सरकार पुराने पड़ गए कानूनों को खत्म कर रही है पर बदलते समय के मुताबिक नए कानूनों की भी जरूरत है। क्योंकि अपराध की प्रकृति बदल गई है। साइबर अपराध बढ़ गए हैं, आर्थिक अपराधों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है और रिश्तों से जुड़े अपराध बढ़ रहे हैं। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा एक बड़ी समस्या है, जिससे आज हमारे शहर -समाज का सामना हो रहा है।
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