Interview : 6 साल तक हुए असफल, तब जाकर आया 2₹ में इंटरनेट बेचने का आइडिया
क्या आपने कभी सोचा था कि किसी चाय वाले की दुकान पर आप इंटरनेट खरीद
सकेंगे. वो भी महज 2 रुपये में. कुछ दिन पहले तक इसका ख्याल भी शायद आपको
नहीं आया होगा, लेकिन बेंगलुरु के वायरलेस नेटवर्क स्टार्टअप वाईफाई डब्बा
ने इसकी शुरुआत भी कर दी है. बेंगलुरु में कई चाय वालों के ठेले पर और
किराने पर आप महज 2 रुपये में इंटरनेट खरीद सकते हैं.

विकास जोशी
नई दिल्ली, 14 दिसंबर 2017, अपडेटेड 15:34 ISTक्या आपने कभी सोचा था कि किसी चाय वाले की दुकान पर आप इंटरनेट खरीद सकेंगे. वो भी महज 2 रुपये में . कुछ दिन पहले तक इसका ख्याल भी शायद आपको नहीं आया होगा, लेकिन बेंगलुरु के वायरलेस नेटवर्क स्टार्टअप वाईफाई डब्बा ने इसकी शुरुआत कर हलचल मचा दी है. सस्ता इंटरनेट देने वाली जियो को यह स्टार्टअप कड़ी टक्कर दे रहा है. इनकी बदौलत ही आप बेंगलुरु में कई चाय वालों के ठेले पर और किराने पर महज 2 रुपये में इंटरनेट खरीद सकते हैं.
जियो को दे रहा टक्कर
जिस वक्त में रिलायंस जियो ने फ्री इंटरनेट देना शुरू किया है, उस वक्त में वाईफाई डब्बा ने शुरुआती दिनों में ही अपनी पहचान बना ली है. फिलहाल यह स्टार्टअप बेंगलुरु के कई शहरों में 2 रुपये में इंटरनेट मुहैया करा रहा है. लेकिन आज लोगों को दो रुपये में इंटरनेट देने वाले इस स्टार्टअप की शुरुआत काफी असफलताओं के बाद हुई है.
इनका था ये आइडिया
वाईफाई डब्बा की शुरुआत शुभेंदु शर्मा और करम लक्ष्मण ने की. Aajtak.in से खास बातचीत में शुभेंदु ने बताया कि वाईफाई डब्बा 6 सालों की असफलता और 33 से भी ज्यादा ऐप शुरू कर बंद होने के बाद मिली सफलता है. पिछले 6 सालों के दौरान हमने सीखा कि हमें उन लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है, जो आज भी इंटरनेट से अछूते हैं. शुभेंदु ने कहा करम के साथ वाईफाई डब्बा उनका तीसरा स्टार्टअप है. आगे पढ़िए इस बातचीत के कुछ अंश :
वाईफाई डब्बा शुरू करने का आइडिया कैसे आया?
हमने पिछले 6 साल के दौरान सोशल मीडिया से लेकर टैक्सी ड्राइवरों के लिए कई ऐप तैयार किये. इसी बीच 2016 में हमने एक ऐप 'स्टेपनी' लॉन्च किया. इस ऐप को हमने टैक्सी ड्राइवरों को ध्यान में रखकर बनाया था. इस ऐप के जरिये हमने टैक्सी ड्राइवरों के लिए एक ऐसा प्लैटफॉर्म तैयार करने की कोशिश की, जहां पर वे आसानी से अपने विचार बांट सकते थे.
नहीं मिली सफलता
लेकिन हम इसमें सफल नहीं रहे. इस दौरान हमें पता चला कि टैक्सी ड्राइवर हमारे ऐप में दो वजहों से रुचि नहीं दिखा रहे. एक तो शहर में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी और दूसरी कि उनके लिए हमारा ऐप खरीदना काफी महंगा साबित हो रहा था. तब ही हमने सोचा कि क्यों न आम लोगों के लिए एक सस्ती इंटरनेट सेवा शुरू की जाए और इस तरह अस्तित्व में आया 'वाईफाई डब्बा.'
शुरुआत कैसे हुई?
वाईफाई डब्बा शुरू करने का विचार आने के 4 से 5 हफ्तों के भीतर हमने इसका प्रोटोटाइप तैयार कर लिया था. हमने ट्रायल के तौर पर इसे कई चाय वालों के स्टॉल पर लगा दिया. प्रोटोटाइप लगाने के कुछ घंटों के भीतर ही दर्जनों लोगों ने इसे यूज करना शुरू कर दिया था. जब हमने देखा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे यूज कर रहे हैं, तो हम समझ गए थे कि इसे बड़े स्तर पर पहुंचाने की जरूरत है और इस तरह हमने इसका दायरा बढ़ाना शुरू किया.
जियो की एंट्री का क्या असर रहा?
साल 2016 के बीच में ही रिलायंस जियो ने सस्ता इंटरनेट लाकर धमाका कर दिया था. जियो के प्लान उस समय काफी सस्ते थे. इस दौरान हमने जियो का असर जानने के लिए एक सर्वे किया. हमनें इसमें पूछा कि जियो के आने के बाद भी क्यों लोग वाईफाई डब्बा का इंटरनेट यूज कर रहे हैं. सर्वे में सामने आया कि जियो का सस्ता इंटरनेट भी आम आदमी के लिए अभी सस्ता नहीं है. इससे हमें ऊर्जा मिली और हम अपने काम को निरंतर बेहतर करते रहे.
कैसे देते हैं इतना सस्ता इंटरनेट?हमने अपने सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को इस तरीके से तैयार किया है कि इसकी वजह से ग्राहकों को हमसे इंटरनेट खरीदना महंगा न पड़े. हम ग्राहकों को 100mbps लाइन , खास तौर पर तैयार किए गए राउटर्स और टोकन देते हैं. इन्हीं टोकन को दुकानदार बेचते हैं और लोगों को इनकी बदौलत ही इंटरनेट यूज करने को मिलता है.
शुरुआत में क्या चुनौतियां रहीं?
वाईफाई डब्बा की शुरुआत करने के दौरान हमें इसके लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर तैयार करने के लिए मशक्कत करनी पड़ी. इसमें हमारा सबसे ज्यादा समय ही नहीं, बल्कि खर्च भी हुआ. हमने कोशिश की कि हम हर काम को बेहतर तरीके से करें ताकि लोगों को सस्ता इंटरनेट मिल सके.
भविष्य के लिए क्या योजनाएं हैं?
फिलहाल हमारी प्राथमिकता वाईफाई डब्बा को पूरे बेंगलुरु शहरा में पहुंचाना है. इसके लिए हम रात-दिन काम कर रहे हैं. हम लगातार हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को बेहतर करने के लिए काम कर रहे हैं. इससे इंटरनेट और भी सस्ते दामों पर मिलेगा.
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