चिप्स में सूअर का मांस मिला होने की ख़बर पूरी तरह से ग़लत भी नहीं है
शहद में गुड़ के मेल का डर है, घी के अंदर तेल का डर है
तम्बाकू में खाद का खतरा, पेंट में झूठी घात का खतरा
मक्खन में चर्बी की मिलावट, केसर में कागज़ की खिलावट
मिर्ची में ईंटों की घिसाई, आटे में पत्थर की पिसाई
व्हिस्की अंदर टिंचर घुलता, रबड़ी बीच बलोटिन तुलता
क्या जाने किस चीज़ में क्या हो, गरम मसाला लीद भरा हो
खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी?
तम्बाकू में खाद का खतरा, पेंट में झूठी घात का खतरा
मक्खन में चर्बी की मिलावट, केसर में कागज़ की खिलावट
मिर्ची में ईंटों की घिसाई, आटे में पत्थर की पिसाई
व्हिस्की अंदर टिंचर घुलता, रबड़ी बीच बलोटिन तुलता
क्या जाने किस चीज़ में क्या हो, गरम मसाला लीद भरा हो
खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी?
1968 में आई फ़िल्म ‘नील-कमल’ के लिए जब साहिर लुधियानवी ने ये गीत लिखा था तब उन्हें भी नहीं पता होगा कि ठीक आधे दशक पहले बाद भी ये बात उतनी ही मौज़ू रहेगी. हर दीवाली होली में खोए में होने वाली मिलावट की ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ से लेकर मैगी के लिए साल भर तक तरसते बेरोज़गार बैचुलर्स तक के पीछे एक ही बात है – भरे हुए की क्या गारंटी?
हम हर दिन कम से कम एक पड़ताल करते ही हैं, और आप लोगों को बताते हैं कि क्या चीज़ सच है और क्या चीज़ झूठ. अमूमन चीज़ें झूठ ही निकलती हैं. लेकिन इन पड़तालों को करते और पढ़ते एक और बात जानी है. वो ये कि – धुंआ उठा है अगर तो आग तो लगी होगी.
मतलब कि हर झूठी खबर, हर झूठी बात के पीछे कहीं न कहीं कोई सच्चाई, कोई मोटिव, कोई दूसरी सच्चाई ज़रूर होती है. तो जब हमें अबकी बार मिलावट के मसले पर मसाला मिला तो उस मसाले में मिलावट ढूंढने के बदले, उसकी पड़ताल के बदले, सच्चाई को एक्सप्लोर और एक्सप्लेन करने की सोची. तो आइए पहले पढ़ते हैं वो मैसेज क्या है जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इन्फेक्ट हमने ऐसे कई मैसेजेस कंपाइल किए हैं जिनमें ‘मिलावट’ की बातें की गई हैं.
पहले तो फोटोज़ देखें –
अब एक व्हाट्सऐप मैसेज, जिसमें हमने टाइपो सुधार के इसे पढ़ने लायक कर दिया है –
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